मसलक ए आला हजरत कौन है?/ala hazrat biography hindi

दोस्तों वैसे तो सभी सुन्नी मुस्लमान आला हजरत को जानते हैं लेकिन जो नहीं जानते उनको आज में आलाहजरत के मुतालिक पूरी जानकारी देने जा रहा हूँ आज आपको क्लियर हो जाएगा की कौन थे मसलक ए अलाहज़रत,आला हजरत के नाम से किसे जाना जाता हैं पूरी जानकारी आज आपको हो जाएगी
आला हजरत के नाम से किसे जाना जाता है?
Ala hazrat biography hindi:आला हजरत के नाम से इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी को जाना जाता है ये बहोत ही बड़े आलिम सायर थे इन्होने बहोत सी किताबे लिखी हैं जिनमे फतावा रिजविया बहारे शरियत जैसी बहोत सी मशहूर किताबे शामिल हैं जिनको पढ़ कर आज भी मुस्लमान तालीम हासिल करते हैं और अपने आप को गुमराह होने से बचाते हैं आला हजरत की लिखी हूई किताबे मुसलमानों के लिए काफी फायदे मंद साबित होती है इल्म हासिल करने के लिए.
आला हजरत ने 1921 से 1856 इसवी तक इस्लाम के लिए अपनी जिंदगी गुज़ारी इन्होने मुसलमानों के लिए बहोत कुछ काफी कम वक़्त में किया है आलाहजरत पाक और हिन्द के सब से बड़े रूहानी और मज़हबी रहनुमा हैं .
आपका जन्म 1856 को भारत के उत्तर प्रदेश के सहर बरेली में हुआ था आपके वालिद का नाम नाकि अली खान था ये एक आलिम और सूफी थे
इनको मानने वालों की एक बड़ी तादाद है जो इनके तरीकों पर अम्ल करते है इनको एक बेहतर आलिम और अपना रहनुमा समझते हैं
आलाहजरत का जन्म बरेली में हुआ था इसलिए इनको मानने वालों को बरेलवी भी कहा जाता हैं साथ इनको भी इमाम अहमद राजा खान बरेलवी के नाम से जाना जाता है साथ आला हजरत अहमद रज़ा खान बरेलवी के नाम से भी बहोत लोग जानते हैं.
इमाम अहमद रज़ा खान की तालीम
इमाम अहमद रजा खान बचपन से ही इस्लामी तालीम में मशगुल हो गए थे आपने कुरान की तालीम के साथ साथ हदीस फलसफा फिकह का भी ज्ञान हासिल किया बताया जाता है की आलाहजरत ने 1872 में ही एक कम उम्र में फिकाह में अपनी आला तालीम मुकम्मल कर ली.
इसके बाद इन्होने अपनी ज़िन्दगी का ज्यादा तर वक़्त इस्लामी तालीम और तबलीग में ही गुज़ार दिया इन्होने अपनी ज़िन्दगी में बहोत से लेख एवं किताबे लिखी जिनको मुसलमनो की कसीर तादाद पढ़ती है इनकी बहोत सी किताबे हैं जिनको आज का सुन्नी मुसलमान अपनी दीनी मालूमात को बढाने के लिए इस्तेमाल करते है.
इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी ने अपने वक़्त के कई जरुरी मुद्दों पर लिखा और बोला है इन्होने इस्लाम के खिलाफ अंग्रेजो के अभियानों का विरोध किया, और साथ ही इस्लाम के अंदर कट्टरपंथी विचारो का भी विरोध किया इन्होने सुन्नी इस्लाम के एक संयुक्त और सांस्कृतिक रूप को बढ़ावा दिया.
वफात
इमाम अहमद रजा खान 28 अक्टूबर 1921 को लगभग 65 साल की उम्र इस्लाम की खिदमत करने के बाद बरेली में वफात पा गए वफात के इनको चाहने वालों ने इनका मजार बना दिया जो इनको चाहने वालों के लिए एक अहम जगह बन गई आज भी इनके दरगाह पे दूर दूर से लोग इनकी जियारत के लिए आते हैं.
इमाम अहमद रजा खान की उपलब्धियां
- इन्होंने सुन्नी इस्लाम के एक संयुक्त और सांस्कृतिक रूप को बढ़ावा दिया इनको चाहने और मानने वाले लोग बरेलवी सुन्नी मुसलमान के नाम से जाने जाते हैं.
- इन्होंने इस्लाम के अंदर कट्टरपंथी विचार का विरोध किया
- इन्होंने इस्लाम के खिलाफ अंग्रेजो की मुहिम की मुखालफत की
- इन्होंने कई मुख्तलिफ इदारो की बुनियाद रखी
- इन्होंने बहुत सी किताबे और आर्टिकल लिखे
इमाम अहमद रज़ा का इस्लाम के लिए कुछ अहम काम
आइए अब इमाम अहमद रजा खान बरेलवी का इस्लाम के लिए मुसलमानों के लिए किए कुछ कामों पर नज़र डालते हैं.
कंजूल ईमान कुरान का तर्जुमा: जैसा की आप लोग जानते हैं की कुरान शरीफ arbic मे है और हम भारती मुसलमान अरबी नही समझते इसलिए आलाहजरत ने कुरान का तर्जुमा उर्दू में किया ताकि भारती मुसलमान आसानी के साथ कुरान को समझ सकें.
फतावा रिजविया: मुसलमानों के अंदर बहुत से खुराफात रस्मे पैदा हो गई थी जिसको दूर करने के लिए आलाहजरत ने फतावा रिजविया लिखा जिसमे मुसलमानों द्वारा किए जाने वाले गैर इस्लामिक कामों की मुखलफात की है जिसको पढ़ कर बहुत से मुसलमान खुराफात करने से बच रहे हैं.
रहमतुल अबद ये आला हजरत द्वारा लिखी हुई एक मशहूर और अहम किताब हैं इसमें इस्लाम के मूलभूत सिद्धांतो और नैतिक मूल्यों के बारे में जानकारी दी गई है.
मांजीजुल मुर्शादिन: ये भी आला हजरत के द्वारा लिखी हुई एक अहम किताब है इसमें आला हजरत ने सूफीवाद के मूल सिद्धांतो का जिक्र किया है.
किस्साए इमाम अहमद रजा: इस किताब में इमाम अहमद रज़ा ने अपनी पूरी जिंदगी के बारे में बताया है इस किताब को पढ़ कर कोई भी इमाम अहमद रज़ा की जिंदगी के बारे में जान सकता है और उनकी जिंदगी से सीख सकता है.
इन सभी किताबों में आला हजरत ने इस्लाम से मुतालिक बहुत सी जानकारी साझा की है इन किताबों को पढ़ कोई भी इस्लाम के बारे में बहुत कुछ जान सकता है.2