अस्सलाम अलैकुम दोस्तों क्या आपको भी लगता हैं की आपकी दुआ कबूल नहीं होती आप दुआ मांग मांग के थक गए हैं लेकिन आपकी दुआ कबूल नहीं हो रही हैं और इसलिए आप परेशान हैं और जानना चाहते हैं की दुआ कबूल न हो तो क्या करे, तो आइये जानते हैं की दुआ कबूल न हो तो हमें क्या करना चाहिए आसान भाषा में.
दुआ कबूल न हो तो क्या करें/dua qabool na ho to kya kare
दोस्तों आपकी मालूमात के लिए बता दू की दुआ एक इबादत हैं लिहाज़ा हमें ज्यादा से ज्यादा दुआ मांगना चाहिए हमें हर चीज़ के लिए दुआ मांगना चाहिए कुछ भी हो हर चीज़ के लिए दुआ मांगना चाहिए जिस चीज़ की हमें जरुरत हो हमें उस चीज़ के लिए अल्लाह से दुआ करना चाहिए.
क्योंकि अल्लाह हम सब की दुआओं को सुनते हैं इसलिए हमें हर चीज़ के लिए हर मुशीबत से निजात हासिल करने के लिए दुआ करना चाहिए क्योंकि दुआ एक इबादत भी हैं.
dua qabool na ho to kya kare: कुरान कहता हैं की ए मुसलमानों तुम नमाज़ के जरिये और शबर के ज़रिये अल्लाह ताला से मदद तलब करो. लिहाज़ा हमें चहिये की हम ज्यादा से ज्यादा नमाज़ पढ़े कोई भी फ़र्ज़ नमाज़ क़ज़ा ना करे और खूब जितना हो सकें अल्लाह से दुआ मांगे और जब हमें लगे की हमारी दुआ कबूल नहीं हो रही हैं तो इस कंडीशन में हमें शबर करना चाहिए क्योंकि दुआ सभी की कबूल होती हैं उसका अज़र कभी हमें नजर आता हैं और कभी नहीं .
क्योंकि कभी कभी जो चीज़ हम अल्लाह से चाह रहे होते हैं वह हमारे लिए बेहतर नहीं होता इसलिए हमें वो चीज़ नहीं मिलती और हम समझते हैं की अल्लाह ताला हमारी दुआओं को नहीं सुन रहे हैं.
दोस्तों अल्लाह हमें ७० माँओं से ज्यादा चाहता हैं तो सोचिये वो कैसे चाहेगा की हमें कोई परेशानी हो आगे चल कर इसलिए कभी कभी ऐसा होता हैं की हम बहोत ज्यादा दुआ मांगते हैं लेकिन हमें उसका रिजल्ट नहीं मिलता वो इसलिए होता हैं की उस वक्त वो हमारे हक में बेहतर नहीं होता जो हम चाह रहे होते हैं.
भले ही उस वक़्त हमें लगता हैं की ये मेरे लिए बहोत जरुरी हैं मेरा फला काम तो होना ही चाहिए लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता की जो चीज़ हम समझते हैं की ये मेरे लिए अच्छा होगा वो अच्छा ही हो इसलिए लिए कभी कभी हमारी दुआ कबूल नहीं होती यानि जो चीज़ हम चाह रहे होते हैं वो हमें नहीं मिलता
इस शुरत में हमें चाहिए की हम आपनी दुआओं का शिलशिला और बढ़ा दें खूब रो रोकर अल्लाह से दुआ मांगे ठीक उसी तरह जैसे हम बचपन में आपने मा बाप से किसी चीज़ के लिए जिद करते थे.
आप आपने बचपन को याद करिए की जब आप कभी कभी किसी ऐसी चीज़ के लिए अपने माँ बाप से जिद कर लिया करते थे जो आपके माँ बाप आपको दिलाना मुनाशिब नहीं नहीं समझते थे और आपकी लाख जिद के बौजुद भी वो आपको वो चीज़ नहीं दिलाते थे जिसके लिए आप जिद कर लिया करते थे क्योंकि वो जानते थे की ये चीज़ आपके लिए बेहतर नहीं हैं लकिन आप उसके लिए जिद करते थे क्योंकि आपके अंदर इतनी समझ नहीं थी की आप समझ सकें की ये चीज़ आपके लिए बेहतर हैं या नहीं
ठीक इसी तरह जब आप अल्लाह से दुआ मांगते हैं तो जरुरी नहीं हैं की वो आपके लिए बेहतर हो जिसके लिए आप दुआ मांग रहे हैं इसलिए आपको लगता हैं की आपकी दुआ कबूल नहीं हुई हैं जबकि आपकी दुआ कबूल हो चुकी होती हैं बस आपको वो चीज़ नहीं मिलती जो आप चाह रहे होते हैं आपको वही मिलता हैं जो आपके लिए बेहतर होता हैं क्योंकि अल्लाह ताला सब कुछ जानने वाला हैं.
दोस्तों हमें हर हाल में हर मुशिबात से निजात के लिए दुआ मांगना चाहिए और जब लगे की दुआ कबूल नहीं हो रही हैं तो इस कंडीशन में दुआओं का सिलसिला माजिद बढ़ा देना चाहिए क्योंकि दुआ जरुर कबूल होती हैं बस कभी कभी हमें उसका रिजल्ट नजर नहीं आता क्योंकि हर वो चीज़ हमारे लिए बेहतर नहीं होती जो हम समझते हैं की ये हमारे लिए बेहतर हैं.
अल्लाह हमें वही अता करता हैं जो हमारे लिए बेहतर होता हैं याद रहे दुआ एक इबादत हैं दुआ करने से हमें अज़र और सवाब मिलता हैं.