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जानिए कर्बला की जंग कैसे शुरू हुई? और इमाम हुसैन को कैसे और किसने शहीद किया?

जानिए कर्बला की जंग कैसे शुरू हुई और इमाम हुसैन को कैसे और किसने शहीद किया

जानिए कर्बला की जंग कैसे शुरू हुई? और इमाम हुसैन को कैसे और किसने शहीद किया?

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कर्बला की जंग शुरू होती हैं हजरत ए मआविया रजि० की खिलाफत के बाद से जब हजरत मआविया रजि० के बाद दुसरे खलीफा को चुनने का वक़्त आता हैं तो मआविया रजि० को मशवरा दिया जाता हैं की आप अपने बाद के लिए कोई ऐसा खलीफा इन्तेजाम करे जिससे मुसलमानों में फिर तलवार न निकले.

लेकिन इसी बीच कुफा से चालीस मुसलमान आते हैं या भेजे जाते हैं वो कहते हैं की मआविया रजि० के बेटे याजिद को खलीफा मुक़र्रर किया जाए.

याजिद खलीफा बनने का काबिल नहीं था इसीलिए हजरत ए हुसैन और उनके साथी ये नहीं चाहते थे की याजिद खलीफा बने. लिहाज़ा हजरत हुसैन रजि० और अब्दुल्लाह इबने जुबैर वगैरह की तरफ से मआविया रजि० को मशवरा दिया जाता हैं कि आप वह काम करे जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया कि अपने बाद के लिए किसी को खलीफा मुतअय्यन नहीं फ़रमाया, बल्कि मुसलमानों की राय आम्मा पर छोड़ दिया.

या वह काम करे जो अबू बकर रजि० ने किया कि एक ऐसे शख्स का नाम पेश किया जो न उनके खानदान का था, और न उनका कोई क़रीबी रिश्तेदार था, और उसकी अहलियत पर भी सब मुसलमान मुत्तफ़िक़ थे.

या वह सूरत इख़्तियार करें जो हज़रत उमर रजि० ने की, कि अपने बाद का मआमला 6 आदमियों पर छोड़ दिया.

इसके अलावा हम लोग कोई और सूरत नहीं समझतें . न क़ुबूल करने के लिए तैयार हैं. लेकिन हजरत हुसैन के इतना समझाने के बौजुद मआविया रजि० अपने राय पर डटे रहे की अब तो यज़ीद के हाथ पर बैअत मुकम्मल हो चुकी हैं.

मआविया रजि० की जिन्दगी में सिर्फ शाम और इराक के आम लोगों ने यजीद को अपना खलीफा मान लिया था और जब दुसरे हजरात ने ये देखा की मुसलमानों की बड़ी तादाद यजीद को अपना खलीफा तस्लीम करने के लिए तैयार हैं तो उन्होंने ने भी यजीद को अपना खलीफा मानने के लिए तैयार हो गए .

लेकिन अहले मदीना खुसूसन हजरत हुसैन रजि० हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि० हजरत अबुद्ल्लाह बिन जुबैर रजि० हरगिज़ नहीं चाहते थे की यजीद मुसलमनो का खलीफा बने ये हजरात किसी की परवा किये बिना हक बात का एलान करते रहे.

यहाँ तक कि मआविया रजि० का इन्तेक़ाल हो गया और यजीद मआविया रजि० की जगह ले लिया और अपने खलीफा बनने का एलान कर दिया.

हजरत हुसैन रजि० को शहीद करने की साजिस

हज़रात हुसैन और उनके साथी किसी कीमत पे नहीं चाहते थे की यजीद खलीफा बने क्योंकि यजीद उस क़ाबिल नहीं था. लिहाज़ा यजीद हजरत हुसैन और उनके साथी को मजबूर करने लगा की वो यज़ीद को खलीफा क़बूल करें.

यज़ीद पूरी कोशिश में था की हजरत हुसैन उसको खलीफा मान ले लेकिन जब उसको लग गया की हजरत हुसैन उसको खलीफा नहीं मानेंगे तो वह हजरत हुसैन को शहीद करने की शाजिश करने लगा.

हजरत हुसैन का पानी बंद कर देने का हुक्म

इबने ज़ियाद ने  कहा की हुसैन रजि० के सामने सिर्फ एक सरत रखों कि यज़ीद के हाथ पर बैअत करें, जब वह ऐसा कर ले तो फिर हम गौर करेंगे, उनके साथ क्या मामला किया जाए,

और हुक्म दिया की हजरत हुसैन और उनके साथियों पर पानी बंद कर दिया जाये ये काम हजरत हुसैन की शहादत से तीन दिन पहले किया गया था.

इन हज़रात पर पानी बिलकुल बंद कर दिया गया यहाँ तक की ये लोग प्यास से परेशान होने लगे, तो हजरत हुसैन रजि० ने अपने भाई अब्बास रजि० को तीस सवार तीस प्यादों के साथ पानी लाने के लिए भेजा, पानी लाने के दौरान उमर बिन सअद की फौज से मुकाबला भी हुआ मगर बिलआखिर वह बीस मशकें पानी के भर ही लाए.

हजरत हुसैन रजि० की वसीयत अपनी हमशीरा और अहले बैत के नाम

” मेरी बहन मै तुम्हे खुदा की कसम देता हूँ कि मेरी शहादत पर तुम कपड़े फाड़ना या सीना कुबा वगैरह हरगिज़ न करना, आवाज़ से रोने चिल्लाने से बचना.”

ये वसीयत फरमा कर बाहर गए, और अपने असहाब को जमा करके तमाम सब तहज्जुद और दुआ व इस्ताग्फार में मशगूल रहे, ये अशुरा की रात थी, सुबह को यौमे अशुरा रोज़ जुमा और एक रिवायत के मुताबिक रोज़ शुंबा था, सुबह की नमाज़ से फारिग होते ही उमर बिन सअद लश्कर लेकर सामने आ गया हजरत हुसैन रजि० के साथ उस वक्त बहत्तर असहाब थे, बत्तीस सवार और चालीस प्यादा आपने भी मुकाबले के लिए असहाब की सफ बंदी फरमाई.

हजरत हुसैन का दर्द अंगेज़ खुतबा

हजरत हुसैन रजि० जब दुश्मन की फौज से मुखातिब हुए तो एक दर्द अंगेज़ खुतबा दिया.

“ए लोगों तुम मेरा नसीब देखो मैं कौन हूं फिर अपने दिलों में गौर करो क्या तुम्हारे लिए जायज़ है कि तुम मुझे कत्ल करो, और मेरी इज्जत पर हाथ डालो, क्या मैं तुम्हारे नबी सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम की साहबजादी का बेटा नहीं हूं क्या मैं उस बाप रजि० का बेटा रजि० नहीं हूं, क्या जाफर तय्यार मेरे चाचा नहीं थे, क्या तुम्हें यह हदीस मशहूर नहीं पहुंची, कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने मुझे और मेरे भाई हसन रजि० को सैय्यादे शबाबे अहलुल जन्नत और कुरतुन एन अहले सुन्नत फरमाया,

अगर तुम मेरी बात की तस्दीक करते हो, और वल्लाह मेरी बात बिल्कुल हक़ है, मैंने उमर भर कभी झूट नहीं बोला जब से मुझे ये मालूम हुआ कि इससे अल्लाह ताला नाराज़ होता है, और अगर मेरी बात का यकीन नहीं होता तो तुम्हारे अंदर ऐसे लोग मौजूद हैं जिनसे उसकी तस्दीक हो सकती हैं.

क्या ये चीज़े तुम्हारे लिए मेरा खून बहाने से रोकने के लिए काफी नहीं हैं, मुझे बताओं की मैंने किसी को कत्ल किया है जिसके क़िसास में मुझे कत्ल कर रहे हो या मैंने किसी का माल लुटा है या किसी को जख्म लगाया है.

उसके बाद हजरत हुसैन रजि० ने रुसाए कुफा का नाम लेकर पुकारा, ए शीन बिन रबई, ए हिजाज़ बिन बहर, ऐ कैस बिन अशअस, ऐ ज़ैद बिन हारिस क्या तुम लोगो ने मुझे बुलाने के लिए खुतूत नहीं लिखे, ये सब लोग मुकर गए,

कि हमने नहीं लिखे हजरत हुसैन रजि० ने फ़रमाया कि मेरे पास तुम्हारे खुतूत(latter )मौजूद है, उसके बाद फ़रमाया “ऐ लोगो अगर तुम मेरा आना पसंद नहीं करते तो मुझे छोड़ दो मैं किसी ऐसी ज़मीन में चला जाऊंगा जहाँ मुझे अमन मिले.

कैस बिन अशस ने कहा की आप अपने चचाज़ाद भाई इबने ज़ियाद के हुक्म पर क्यों नहीं उतर आते, वह फिर आपके भाई है,

आपके साथ बुरा सुलूक नही करेंगे, हजरत हुसैन रजि० ने फरमाया की मुस्लिम बिन अकील के कत्ल के बाद भी तुम्हारी यही राय है, वल्लाह मैं कभी उसको कबूल नहीं करूंगा ये फरमा कर हजरत हुसैन रजि० घोड़े से उतर आए.

उसके बाद ज़हीर बिन अलकीन रजि० खड़े हुए,उन लोगों को नसीहत की, कि आले रसूल के खून से बाज़ आजाए, और बतलाया कि अगर तुम अपनी इस हरकत से बाज़

न आए और इब्ने ज़ियाद का साथ दिया, तो ख़ूब समझ लो तुम को भी इब्ने ज़ियाद से कोई फलाह न पहुंचेगी,

वह तुम को भी कत्ल व ग़ारत करेगा, उन लोगों ने ज़हीर को बुरा भला कहा, और इब्ने ज़ियााद की तारीफ की, और कहा कि हम तुम सब को कत्ल करके इब्ने ज़ियाद के पास भेजेंगे।

ज़हीर रजि० ने फिर कहा कि ज़ालिमो! अब भी होश में आओ, फातिमा रजि० का बेटा सुमय्या के बेटे (इब्ने ज़ियाद) से ज़्यादा मुहब्बत व इकराम का मुस्तहिक है, अगर

तुम उनकी इमदाद नहीं करते तो उनको और उनके चचज़ाद भाई यज़ीद को छोड़ दो, कि वह आपस में निपट लें, ब-खुदा यज़ीद बिन मआविया रजि० तुम से इस पर नाराज़ न होगा।

बदबख्त शिम्र का पहला तीर

जब गुफ्तगू तवील होने लगी तो शिम्र ने पहला तीर ज़हीर रजि० पर चला दिया, उसके बाद हुर बिन यज़ीद रज़ि० जो अब ताइब हो कर हज़रत हुसैन रज़ि० के लश्कर में शामिल हो गए थे, आगे बढ़े और लोगों को ख़िताब कियाः-

“ऐ अहले कूफा तुम हलाक व बर्बाद हो जाओ, क्या तुमने उनको इसलिए बुलाया था कि वह आ जाएं तो तुम उनको कत्ल करो, तुम ने कहा था कि हम अपनी जान व माल

आप पर क़ुरबान करेंगे, और अब तुम ही उनके कत्ल के दर पे तूले हुए हो, उनको इसकी भी इजाज़त नहीं देते कि खुदा की तवील व अरीज़ जमीन में कही चले जाएं जहां उनको और अहले बैत को अमन मिले.

उनको तुमने कैदियों की तरह बना लिया और दारियाए फुरात का जारी पानी उन पर बंद कर दिया है जिसको यहूदी, नसरानी, मजूसी, सब पीते है, और जिस में इस इलाके के खिंजीर लोटते है, हुसैन रजि० और उनके अहले बैत प्यास से बे होस हो रहे हैं.

अब हुर बिन यजीद पर भी तीर फेके गए , वह वापस आ गए, और हजरत हुसैन रजि० के आगे खड़े हो गए उसके बाद तीर अंदाजी का सिलसिला शुरू हो गया.

फिर घमसान की जंग हुई फारिक मुखालिफ के भी काफी आदमी मारे गए और हजरत हुसैन रजि० के साथियों में भी बाज़ शाहिद हुए , हूर बिन यजीद ने हुसैन के साथ होकर शदीद कताल किया.

उसके बाद बदबख्त शिम्र ने हजरत हुसैन और उनके साथी पर हल्ला बोल दिया. हजरत हुसैन के साथी ने बहुत ही बहादुरी से मुकाबला किया, कूफा के लश्कर पर जिस तरफ हमला करते थे मैदान साफ हो जाते थे.

जंग करते करते दुश्मन ने खेमों में आग लगाना शुरू कर दिया.

घमसान की जंग नमाज़े ज़ुहर का वक़्त

हजरत हुसैन रजि० के ज्यादा तर साथी शाहिद हो चुके थे और दुश्मन की फौज भी आपके करीब पहुंच चुकी थी, अबू शामामा सईदी ने अर्ज किया की में आपके सामने कत्ल होना चाहता हु लेकिन ये दिल चाहता है की जुहार का वक्त हो चुका है नमाज़ अदा करके परवरदिगार के सामने जाऊं.

हजरत हुसैन बा आवाज़ बुलंद फरमाया कि जंग रोक दो यहां हम नमाज पढ़ ले, ऐसी घमसान जंग में कौन सुनता था , कत्ल का सिलसिला जारी जंग रुकने का नाम नहीं ले रही थी, और इसी दौरान हज़रत अबू शमामा रजि० शहीद हो गए , उसके बाद हजरत हुसैन रजि० ने अपने चंद साथियों के साथ नमाजे ज़ुहार सलातुल खौफ के मुताबिक अदा फरमाई.

नमाज के बाद फिर कताल शुरू किया अब ये लोग हजरत हुसैन रजि० तक पहुंच चुके थे हंफी हजरत हुसैन रजि० के सामने आकर खड़े हो गए और सब तीर अपने बदन पर खाते रहे यहां तक कि जख्मों से चूर होकर गिर गए.

उस वक्त हजरत हुसैन रजि० के साथ कुछ लोग बचे बाकी सब शहीद हो गए.

ये लोग देख रहे थे कि हम ना हजरत हुसैन रजि० को बचा सकते हैं ना खुद बच सकते हैं तो अब उनमें से हर शख्स की ये ख्वाहिश थी कि मैं हजरत हुसैन रजि० के सामने पहले शहीद हो जाऊं इसलिए हर शख्स निहायत ही सिद्दत से मुकाबला कर रहा था.

इसी में हजरत हुसैन रजि० के बड़े साहेबजादे अली अकबर रजि० शेअर पढ़ते हुए आगे बढ़े. कमबख्त मर्रह इब्ने मुंकज ने उनको नेज़ा मार कर गिरा दिया फिर कुछ और शकी आगे बढ़े और लाश के टुकड़े कर दिए.

अब हजरत हुसैन रजि० तकरीबन तन्हा बे यार मददगार रहे गए.

लेकिन किसी में हिम्मत नहीं थी कि उनकी तरफ बढ़े इसी तरह बहुत देर तक यहीं सिलसिला जारी रहा जो शख्स आपके तरफ बढ़ता उसी तरह लौट जाता और हजरत हुसैन के कत्ल और उनके गुनाह को कोई अपने सर नही लेना चाहता था.

यहां तक कि कबिलाए कंदा का एक शकीकुल कल्ब मालिक बिन नासिर आगे बढ़ा, और हजरत इमाम हुसैन रजि० के सर पर तलवार से हमला किया, आप सदीद ज़ख्मी हो गए, अपने छोटे साहिबजादे अब्दुल्लाह रजि० को बुलाया और अपनी गोद में बिठा लिया बनी असद की एक बदनसीब ने उनको भी तीर मारकर हलाक कर दिया.

हजरत हुसैन रजि० ने उस मासूम बच्चा का खून लेकर जमीन पर बिखेर दिया और दुआ की या अल्लाह तू ही इन जालिमो से हमारा इंतकाम ले.

उस  वक्त हजरत हुसैन की प्यास हद को पहोंच चुकी थी, आप पानी पीने के लिए दरियाए फरात के करीब तशरीफ ले गए, ज़ालिम हसीन बिन नमीर ने आपके मुंह पर निशाना करके तीर फेंका, जो आपको लगा और दाहिने मुबारक से खून जारी हो गया. इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैही राजिऊन०

हजरत हुसैन रजि० की शहादत

उसके बाद शिम्र 10 आदमी साथ लेकर हजरत हुसैन रजि० की तरफ बढ़ा हजरत हुसैन रजि० शदीद प्यास और इतने जख्मों के बावजूद उसका बहादुरी से मुकाबला कर रहे थे.

और जिस तरफ हुसैन रजि०बढ़ते, ये भागते नजर आते थे, अहले तारीख ने कहा है कि यह एक बे नज़ीर वाकिआ है कि जिस शख्स की औलाद और अहले बैत कत्ल कर दिए गए हों, उसको खुद शदीद ज़ख्म लगे हुए हैं और वह पानी के एक एक कतरे से महरूम हो और इस कुव्वात और साबित क़दमी से मुकाबला कर रहा है कि जिस तरफ रुख करता है मुसल्लह सिपाही भेड़ बकरियों की तरह भागने लगते हैं.

शिम्र ने जब ये देखा के हुसैन रजि० को कत्ल करने से हर शख्स बचना चाहता है तो उसने आवाज दी की सब लोग अचानक हमला करो, इस पर बहुत से बदनसीब आगे बढ़े नेज़ो और तलवारों से अचानक हमला किया, और हज़रत ए हुसैन रजि० जालिमों का बहादुरी से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए. इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैही राजिऊन०

शिम्र ने खुली बिन यजीद से कहा उनका सर काट लो, वह आगे बढ़ा मगर हाथ काप गए, फिर सखी बदबख्त सनान बिन अनस ने ये काम किया, आपकी लाश को देखा तो 33 ज़ख्म नेज़ो के, और 34 ज़ख्म तलवारों के आपके जिस्म पे थे, तीरों के ज़ख्म के अलावा.

लाश को रौंदा गया

इब्न ज़ियाद का हुक्म था की कत्ल के बाद लाश को घोड़े के टापों से रौंदा जाए, उमर बिन सअद ने चंद सवारों को हुक्म दिया, उन्होंने ये भी कर डाला, इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैही राजिऊन०

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