मुहर्रम की फातिहा का आसान तरीका/Muharram ki fatiha ka tarika
Muharram ki fatiha ka tarika: मुहर्रम का चाँद निकलने के बाद से काई मुस्लिम घरों में फातिहा दिलाया जाता है। ये फातिहा हजरते इमाम हुसैन और उनके साथियों के नाम से होती हैं जो कर्बला में यज़ीद के फौज के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए थे। आइये जानते हैं कैसे आप आसानी के साथ मुहर्रम की फातिहा कर सकते हैं।
मुहर्रम की फातिहा किसके नाम से होती है ?
मुहर्रम की फातिहा हजरत इमाम हुसैन और शोहदाए करबोबला में जो 72 लोग शहीद हुए हैं उनके नाम से होती हैं।
मुहर्रम की फातिहा का तरीका ?
मुहर्रम की फातिहा करने के लिए सबसे पहले वजू करके शिन्नी और पानी लेके जा नमाज बिछा कर काबे की तरफ रुख करके बैठ जाए।
और सबसे पहले दो से तीन बार दरूद शरीफ पढ़े उसके बाद कोई भी एक सुरे पढ़ें जो आपको याद हो।
आप अयातुल कुर्सी सूरह जुमा अहद नामा और सूरह कुरैश भी पढ़ सकते हैं।
3.आयतल कुर्शी
ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلْحَىُّ ٱلْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُۥ سِنَةٌۭ وَلَا نَوْمٌۭ ۚ لَّهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۗ مَن ذَا ٱلَّذِى يَشْفَعُ عِندَهُۥٓ إِلَّا بِإِذْنِهِۦ ۚ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَىْءٍۢ مِّنْ عِلْمِهِۦٓ إِلَّا بِمَا شَآءَ ۚ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ ۖ وَلَا يَـُٔودُهُۥ حِفْظُهُمَا ۚ وَهُوَ ٱلْعَلِىُّ ٱلْعَظِيمُ ٢٥٥
अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवा अल-हय्युल क़य्यूम , ला ता’खुदुहु सिनातुन वा ला नवम , लहु मा फी अस-समावती वा मा फिल-अर्ज़ । मन जल लज़ी यश फ़ऊ इनदहू इल्ला बि इज़निह। यअलमु मा बैना अय दीहिम वमा खल्फहुम। वला यूहितूना बिशय इम मिन इल्मिही इल्ला बिमा शा. .. अ वसि अ कुरसिय्यु हुस समावति वल अर्ज़
वला यऊ दुहू हिफ्ज़ुहुमा वहुवल अलिय्युल अज़ीम।
इसके बाद एक बार क़ुल या अय्योहल काफिरून यानि सूरे काफिरून पढ़ें:
قُلْ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلْكَـٰفِرُونَ ١ لَآ أَعْبُدُ مَا تَعْبُدُونَ ٢ وَلَآ أَنتُمْ عَـٰبِدُونَ مَآ أَعْبُدُ ٣ وَلَآ أَنَا۠ عَابِدٌۭ مَّا عَبَدتُّمْ ٤ وَلَآ أَنتُمْ عَـٰبِدُونَ مَآ أَعْبُدُ ٥ لَكُمْ دِينُكُمْ وَلِىَ دِينِ ٦
कुल या अय्योहल काफ़िरून। ला अअबुदु मा तअबुदुन। व ला अन्तुम आबिदु न मा अअबुदू। व ला अ न आबिदु माँ अबतुम। व ला अन्तुम आबिदु न मा अअबुदू। लाकुम दिनकुम व ली या दीन।
इसके बाद तीन बार सूरे एखलाक यानि कुल हुवल लाहु अहद पढ़े:
قُلْ هُوَ ٱللَّهُ أَحَدٌ ١ ٱللَّهُ ٱلصَّمَدُ ٢ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ ٣ وَلَمْ يَكُن لَّهُۥ كُفُوًا أَحَدٌۢ ٤
कुल हुवल्लाहु अहद। अल्लाहुस समद। लम यलिद वलम यूलद। वलम यकुल लहु कुफुवन अहद।
इसके बाद एक बार सूरे फलक यानि क़ुल आउज़ु बिरब्बिल फलक पढ़े:
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلْفَلَقِ ١ مِن شَرِّ مَا خَلَقَ ٢ وَمِن شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ ٣ وَمِن شَرِّ ٱلنَّفَّـٰثَـٰتِ فِى ٱلْعُقَدِ ٤ وَمِن شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ ٥
क़ुल आउज़ु बिरब्बिल फलक। मिन शररी मा ख़लक़। वामिन शरीर ग़ासिकिन इज़ा वक़ब। वमिन शररिन नफ़ फ़ासाति फ़िल उक़द। वमिन शररि हासिदिन इज़ा हसद।
इसके बाद एक बार सूरे नास यानि कुल आऊजु बी रब्बिल नास पढ़े।
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلنَّاسِ ١ مَلِكِ ٱلنَّاسِ ٢ إِلَـٰهِ ٱلنَّاسِ ٣ مِن شَرِّ ٱلْوَسْوَاسِ ٱلْخَنَّاسِ ٤ ٱلَّذِى يُوَسْوِسُ فِى صُدُورِ ٱلنَّاسِ ٥ مِنَ ٱلْجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ ٦
कुल आऊजु बिरब बिन नस। मालिकिन नास। इलाहिन नास। मिन शर रिल वसवासिल खन्नस। अल्लज़ी युवसविसु फी सुदूरिन नास। मिनल जिन्नाति वन नास।
इसके बाद एक बार सूरे फातिहा यानि अल्हम्दु शरीफ पढ़े :
ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَـٰلَمِينَ ٢ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ ٣ مَـٰلِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِ ٤ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ ٥ ٱهْدِنَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلْمُسْتَقِيمَ ٦ صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّينَ ٧
अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन। अर्रहमानिनिर्रहीम। मालिकी यौमिद्दीन। इय्या क न अबुदु व इय्या क नस्तईन। इह दिनस्सिरातल मुस्तक़ीम। सिरातल्लज़ीना अन अमता अलय हिम। गैरिल मग़दुबी अलय हिम व- लज्जाल्लिन। आमीन।
इसके बाद एक बार सूरे बक़रह अलिफ़ लाम मीम से मुफ्लिहून तक पढ़ें:
الٓمٓ ١ ذَٰلِكَ ٱلْكِتَـٰبُ لَا رَيْبَ ۛ فِيهِ ۛ هُدًۭى لِّلْمُتَّقِينَ ٢ ٱلَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِٱلْغَيْبِ وَيُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقْنَـٰهُمْ يُنفِقُونَ ٣ وَٱلَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ وَبِٱلْـَٔاخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ ٤ أُو۟لَـٰٓئِكَ عَلَىٰ هُدًۭى مِّن رَّبِّهِمْ ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُفْلِحُونَ ٥
अलीफ लाम मीम। ज़ालिकल क़िताब ला रै ब फिहि हुदल्लील मुत्तक़ीन। अल्लज़ी न युअमिनु न बिल-गैबि व व युक़ीमूनस्सला-त व मिम्मा र-ज़क़्नाहुम् युन्फिकून। वल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिमा उन्ज़िला इलैका वमा उन्ज़िला मं क़ब्लिक व बिल आखि-रति हुम् यूकिनून। उलाइका अला हुदम्-मिर्रब्बिहिम् व उलाइ-क हुमुल्-मुफ़लिहून।
इसके बाद एक बार। आयते ख़ामशा पढ़े:
व इलाहुकुम इलाहुं वाहिद, लाइलाहा इल्ला हुवर्रहमानुर्रहीम । इन्ना रहमतल्लाहि क़रीबुम मिनल मुहसिनीन । वमा अरसल नाका इल्ला रहमतल लिल आलमीन । मा काना मुहम्मदुन अबा अहादिम मिंर रिजालिकुम वला किर रसूल्लाहि वखा तमन नबीय्यीन व कानल्लाहु बिकुल्लि शैइन अलीमा । इन्नल्लाहा व मलाई क त हू यूसल्लूना अलन्न् बिय्यि या अय्यु हल लज़ीना आ मनू सल्लू अलैहि व सल्लिमू तस्लीमासल्लू अलैहि व सल्लिमू तस्लीमा।
एक बार दरूद शरीफ पढ़े उसके बाद निचे जो लिखा हैं उसको पढ़ते हुए फातिहा के लिए हाथ उठाये
“सुब्हाना रब्बिका रब्बिल इज्जति अम्मा यसिफुन व सलामुन अलल मुरसलीन वल हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन”
अब अल्फतिहा कहते हुए हाथ उठाये:
Note: अगर आपने पहले से कुछ पारा या सूरे पढ़ी है और उसको भी बखसना चाहते हैं तो उसका भी नाम लें मान लीजिये आपने 5 पारा और 10 सूरह पढ़ा हुआ हैं।
और इसे मुहर्रम की फातिहा में बखसना चाहते हैं तो यू कहे या अल्लाह 5 पारा और 10 सूरह पढ़ा गया इसके पढने में कही कोई गलती हो गई हो तो इसे अपने रहमो वा करम से मुआफ फरमा दें।
और इन सब चीज़ों को सवाब सब से पहले हमारे आका हज़रत मुहम्मद मुश्तफा स. अ. को नजर करता हूँ कबूल फरमा.
और अगर पहले कुछ नहीं पढ़ा हैं तो बस इतना कह दे की या अल्लाह जो कुछ पढ़ा गया चंद सूरते पढ़ी गई आयते पढ़ी गई इन सब के पढ़ने में कही कोई गलती खामिया हो गई हों तो इसे अपने रहमों करम से मुआफ फरमा दें और इन सब चीज़ों का सवाब सबसे पहले हमारे प्यारे आका मोहम्मद स. अ. को नज़र करता हूँ क़बूल फरमा।
फिर ये कहें: आपके सदके तुफैल से तमाम अम्बियाए कराम सहाबा ए अजाम उम्म्हातुल मुस्लेमीन तमाम औलिया उलमा सोह्दा सोहालेहीन और आदम अलैहिस्सलाम से ले कर अब तक जितने भी औलिया उलमा सोह्दा इस दुनिया में तशरीफ़ लाये हैं सब को नजर करता हूँ कबूल फरमा ।
और बिलख़ुसूस हजरत इमाम हुसैन रजि० को नज़र करता हु क़बूल फरमा। सोह्दाये कर्बोबाला में जो 72 लोग शहीद हुए बिलख़ुसूस उन सब को नजर करता हूँ कबूल फरमा.
और साथ ही साथ इन सब चीज़ों का सवाब हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रजि० को नज़र करता हूँ क़बूल फार्मा , और हज़रत उमर फ़ारूक़ रजि० को नज़र करता हूँ क़बूल फरमा , हज़रत उस्मान रजि० को नज़र करता हूँ क़बूल फरमा और मौला अली मुश्किल कुशा हज़रत अली रजि० को नज़र करता हूँ क़बूल फरमा।
उम्मीद है आप समझ गए होंगे की की मुहर्रम की फातिहा करने का आसान तरीका क्या हैं। उम्मीद हैं ये तरीका आपको समझ में आया होगा अगर आपका कोई सवाल हैं तो आप कमेंट करके पूछ सकते हैं इंशाअल्लाह आपके सवाल का जवाब लाज़मी दिया जायेगा।
नोट : ये आर्टिकल अहले सुन्नत के अक़ीदे के मुताबिक़ लिखा गया है कुछ लोगो की राय अलग हो सकती हैं। हालाँकि अहले सुन्नत के उलमा भी फातिहा को फ़र्ज़ सुन्नत या वाजिब नहीं मानते हैं ये एक ऐसा अमल है अगर कर लिया तो अच्छा है न किया तो कोई गुनाह नहीं हैं।
Thank you masaallah