muharram me kya karna chahiye: मुहर्रम के महीने में हमें ज़्यादा से ज़्यादा इबादत और नेक काम करना चाहिए रोज़ा रखना चाहिए नमाज़ पढ़ना चाहिए और तौबा अस्तगफार कसरत के साथ करना चाहिए और जितना हो सके उतना गरीबों की मदद करना चाहिए।
मुहर्रम के महीने में क्या करना चाहिए?
रोज़ा रखना चाहिए
वैसे तो मुहर्रम का पूरा महीना ही बहुत ही बरकत वाला महीना है लेकिन मुहर्रम का जो पहला अशरा है ये बहुत ही बरकत वाला अशरा हैं लिहाज़ा हमें मुहर्रम की शुरवाती अशरे में लाज़मी रोज़ा रखना चाहिए।
अल्लाह के रसूल स. अ. फरमाते हैं की मुहर्रम के महीने में रोज़ा रखने पर मुझे गुमान है की अल्लाह ताला एक माह के गुनाह को मिटा देता है। और एक माह के रोज़े के बराबर सवाब मिलता है यानि एक रोज़े का सवाब एक महीने के रोज़े के बराबर मिलता है।
आप मुहर्रम के महीने में कभी भी रोज़ा रख सकते हैं लेकिन कोशिश ये करे की आप 9,10 या 10,11 मुहर्रम का रोज़ा रखें क्योंकि 10 मुहर्रम का रोज़ा रखना सुन्नत है क्योंकि 10 मुहर्रम का रोज़ा आप मोहम्मद स. अ. भी रखा करते थे। चूँकि 10 मुहर्रम को यहूदी लोग भी रोज़ा रखते हैं लिहाज़ा हमें उनकी मुखालफत में हमेशा दो रोज़ा रखना चाहिए एक 10 मुहर्रम को और एक 9 मुहर्रम को या फिर 11 मुहर्रम को।
तौबा अस्तग़फ़ार करना चाहिए
मुहर्रम के महीने में खास करके 10 मुहर्रम को हमें कसरत के साथ तौबा और अस्तगफार करना चाहिए क्योंकि यही वो दिन है जिस दिन हज़रते अदम अलैहिस्सलाम की तौबा क़ुबूल हुई थी आप रोज़े की हालत में जब इफ्तारी के लिए बैठे तो रोज़ा खोलने से पहले सच्चे दिल से कसरत के साथ तौबा अस्तगफार करें इंशाअल्लाह आपकी दुआ लाज़मी क़ुबूल होगी क्योंकि इफ्तार के वक़्त की दुआ अल्लाह जरुरु क़ुबूल फरमाता हैं।
नमाज़ की पाबन्दी करना चाहिए
वैसे तो नमाज़ किसी भी महीने में नहीं छोड़ना चाहिए लेकिन मुहर्रम के महीने में खास तौर से किसी भी टाइम की नमाज़ नहीं छोड़ना चाहिए और हो सके तो ज़्यादा से ज़्यादा नफिल नमाज़ पढ़ना चाहिए क्योंकि हज़रते इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में भी नमाज़ नहीं छोड़ी लिहाज़ा हमें उनकी याद में फ़र्ज़ नमाज़ के साथ साथ ज़्यादा से ज़्यादा नफिल नमाज़ भी पढ़ना चाहिए।
मुहर्रम महीने को मनहूस नहीं समझना चाहिए
बहोत से लोग मुहर्रम महीने को मनहूस समझते हैं उनका मानना हैं की इस महीने में हज़रते इमाम हुसैन को यज़ीदियों ने शहीद कर दिया था लिहाज़ा ये महीना मनहूस हैं। अगर आप भी ऐसी सोच रखते हों तो आपकी जानकरी के लिए बता दूँ की शाहदत से कोई भी महीना मनहूस नहीं होता 10 मुहर्रम को हज़रते इमाम हुसैन शहीद हुए थे और शहादत इस्लाम में बहुत बड़ा मरतलबा हैं ये तो आप सभी जानते हैं।
लेकिन अगर आप शाहदत की वजह से किसी भी महीने को मनहूस समझने लगेंगे तो फिर तो आपके लिए कोई सही महीना है ही नहीं क्योंकि लगभग हर महीने में किसी न किसी सहाबी अल्लाह के नेक बन्दे की साहदत हुई हैं।
ऐसे बहोत से अल्लाह के बन्दे हैं जो शहीद हो चुके हैं ये सभी अलग अलग महीने में शहीद हुई हैं फिर तो इस लिहाज़ा से आपके लिए कोई भी महीना सही हैं ही नहीं। याद रहे शाहदत से कोई भी महीना मनहूस नहीं हो जाता है बल्कि उस वजह से उस महीने की शान और बढ़ जाती हैं क्योंकि शाहदत की वजह से उस महीने को लोग जानने लगते हैं जैसे मुहर्रम को हज़रते इमाम हुसैन की सहादत से लोग जानते हैं।
गरीबों की मदद करना चाहिए
जितना हो सके उतना गरीबों की मदद करे हज़रते हुसैन की याद में जितना हो सके उतना गरीबों की मदद करें हज़रते हुसैन के नाम से लंगर करें और गरीबों को खिलाएं कहने का मतलब इस महीने में जितना हो सके उतना नेकी का काम करे और खूब इबादत करें।
ताजियादारी ढोल मतलम वैगरह से दूर रहे हैं
ताजिया ढोल मातम से दूर रहे हैं क्योंकि ये नज़ायज़ों हराम हैं फतावा रिजविया में जिल्द 24 पेज नंबर 501 पर फ़रमाया गया हैं: ताजिया राईज नाजायज़ व बिदअत है इसका बनाना गुनाह और इस पर शिरनी वगैरह चढ़ाना महज़ जहालत और इसका का एहतराम करना भी बिदअत और जहालत है।